उदयगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर मनमानी चरम पर – बिना मोबाइल नंबर के नहीं किया जा रहा इलाज!
(अफ़ज़ल खान उदयगढ़/अलीराजपुर)
जिले के नानपुर क्षेत्र में अवैध झोलाछाप डॉक्टर के इलाज से एक आदिवासी की मौत के बाद प्रशासन ने अवैध क्लीनिकों पर कार्रवाई करते हुए जिलेभर में बिना रजिस्ट्रेशन के संचालित सभी क्लीनिकों को बंद करवा दिया। इससे अब समूचे क्षेत्र के मरीज शासकीय स्वास्थ्य संस्थानों पर निर्भर हो गए हैं। लेकिन उदयगढ़ मुख्यालय पर संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में मरीजों को इलाज के पहले मोबाइल नंबर देना अनिवार्य किया जा रहा है, जिससे मोबाइल न रखने वाले ग्रामीण मरीज इलाज से वंचित हो रहे हैं।
मरीजों की अनदेखी, मोबाइल नहीं तो इलाज नहीं!
उदयगढ़ से सामने आए हालिया मामले में एक आदिवासी ग्रामीण बीगनियु पिता हटु, निवासी छोटी उटी (लक्ष्मण फलिया), अपनी 16 वर्षीय बेटी रैना को तेज़ बुखार की हालत में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुँचे। वहां मौजूद डॉक्टरों की अनुपस्थिति में बीएमएचएस कार्यकर्ता शंकरसिंह भयडिया ने जांच के लिए लड़की को लेब में भेजा। लेकिन लेब टेक्नीशियन अभयसिंह भिंडे ने मोबाइल नंबर नहीं देने पर खून की जांच करने से साफ इंकार कर दिया। मजबूरन पिता को बेटी को बिना इलाज के वापस ले जाना पड़ा।
इसी तरह प्रताप फलिया के भेरू पिता कलसिंह को पैरों में घाव के इलाज के लिए काफी देर तक भटकना पड़ा, लेकिन डॉक्टर की अनुपस्थिति के चलते इलाज नहीं हो सका।
आदेश कौन दे रहा है?
जब इस पूरे मामले में लेब टेक्नीशियन अभयसिंह भिंडे से बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें भोपाल से ‘हब कंपनी’ के आदेश हैं कि बिना मोबाइल नंबर के जांच नहीं की जा सकती। जब उनसे लिखित आदेश दिखाने को कहा गया, तो वे कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सके।
वहीं, बीएमओ डॉ. अमित दलाल ने स्पष्ट किया कि "ऐसा कोई नियम नहीं है कि इलाज से पहले मरीज का मोबाइल नंबर देना अनिवार्य हो।"
सीएचएमओ ने दिए जांच के निर्देश
जब अलीराजपुर सीएचएमओ डॉ. सुनहरे को मामले की जानकारी दी गई तो उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं होना चाहिए, मैं मामले की जांच करवाता हूँ।”
डॉक्टर नदारद, फील्ड वर्कर कर रहे इलाज
वर्तमान में उदयगढ़ स्वास्थ्य केंद्र में सिर्फ दो डॉक्टर – डॉ. लक्ष्मी चौपड़ा और डॉ. देवेंद्र ठाकुर पदस्थ हैं, लेकिन शनिवार को दोनों डॉक्टर पीजी एग्जाम के चलते अनुपस्थित थे। बीएमओ डॉ. अमित दलाल भी मुख्यालय पर उपस्थित नहीं रहते और अधिकतर समय ग्राम बोरी में व्यतीत करते हैं। ऐसे में फील्ड वर्कर ही मरीजों का इलाज कर रहे हैं।
Post a Comment