आये तब भी जेब नहीं, रवाना होंगे तब भी जेब नहीं — फिर पूरा जीवन जेब के चक्कर में क्यों? — साध्वी मुक्ति प्रभाजी म.सा.
फारूख शैरानी मेघनगर। वर्तमान समय में बाहरी शिक्षा जितनी आवश्यक है, उससे कहीं अधिक जरूरी है बच्चों में धार्मिक संस्कारों का विकास। ऐसे में यदि गुरु का सानिध्य एवं प्रेरणा मिल जाए तो बच्चे भी कठिन तपस्याओं में अग्रसर हो जाते हैं।
नगर में विराजित जिनशासन गौरव आचार्य भगवंत श्री उमेश मुनिजी म.सा. के प्रथम शिष्य प्रवर्तक श्री जिनेन्द्र मुनिजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती साध्वी मुक्ति प्रभाजी म.सा. आदि ठाना के सानिध्य एवं प्रेरणा से कु. मनस्वी अभिषेक पिचा ने चातुर्मास के प्रारंभ से ही उपवास आरंभ कर अब तक अठाई तप का प्रत्याख्यान लिया है। उनके साथ कुल आठ तपस्वी क्रमशः — कविंद्र धोका, जयेश जैन, स्नेहलता वागरेचा, शिरोमणि वागरेचा, सुभद्रा ओरा और ऋतु गादिया की तपस्या भी गतिमान है।
प्रत्येक दिन महासती जी द्वारा जिनवाणी के माध्यम से जीवन में धर्म के महत्व पर उपदेश दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि धन में पूरे हृदय को बदलने की ताकत भले हो, पर कटु हृदय को बदलने की शक्ति केवल धर्म में है। किसी को देने में या किसी से लेने में दिल बड़ा रखना चाहिए। जब हमारा जन्म हुआ, तब जो वस्त्र थे उनमें भी जेब नहीं थी और जब इस संसार से विदा होंगे तब भी उस कपड़े में जेब नहीं होगी — तो फिर पूरा जीवन केवल जेब के पीछे क्यों भागना? जीवन को धर्म से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है।
संघ के सचिव विपुल धोका ने बताया कि 26 जुलाई से सामूहिक धर्मचक्र तपस्या प्रारंभ होगी, जिसका समापन 27 अगस्त को होगा। श्री संघ में आयंबिल एवं तेले तप की तपस्या लड़ी के रूप में निरंतर गतिमा
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